सुल्तान बहादुर शाह ने जब रायसेन किले को घेरा तो रानी दुर्गावती ने कहा- झुको मत, लड़ो
रायसेन के किले पर क्षत्राणियों द्वारा किए जौहर के बाद से 6 मई को जौहर दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण के मद्देनजर आज पूरे भारत से इस महान दिवस पर वीर राजपूत योद्धाओं के बलिदान और क्षत्राणियों द्वारा किए जौहर को बयान करते हजारों की संख्या में “रायसेन किले” और “FLAMESOFBRAVERY”हैशटैग लगाकर ट्वीट किए जा रहे हैं.
रानी दुर्गावती और राजपूतानियों के जौहर को 491 साल पूरे हो चुके हैं। रानी दुर्गावती मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की बेटी थीं।
6 मई 1532 को किले में हुए इस जौहर के कई प्रमाण इतिहास में मिलते हैं। रायसेन के गजेटियर में भी इस घटना का उल्लेख है। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने रायसेन के राजा सिल्हादी शिलादित्य को अपने कैंप में बुलाकर धोखे से मांडू में कैद कर लिया था। रायसेन किला जब रानी दुर्गावती और शिलादित्य के भाई लक्ष्मण राय की देखरेख में था तो इसे घेर लिया। घेराबंदी के बाद भी सुल्तान जब किले में सेंध नहीं मार पाया तब शिलादित्य ने बहादुर शाह से अपने भाई व पत्नी से बात करने की इच्छा जताई। शिलादित्य ने किले में पहुंचकर रानी दुर्गावती और भाई से मंत्रणा की। इसमें न झुकने और हर हाल में लड़ने का फैसला लिया गया।
हार तय थी पर किया युद्ध, रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतनियों के साथ जौहर करने का निर्णय लिया
किले में बारूद की कमी और शत्रु सेना की अधिक संख्या के चलते हार तय थी, इसलिए रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतनियों के साथ जौहर करने का निर्णय ले लिया। राजपूतों ने लड़ाई जारी रख आत्मघाती युद्घ तो किया, लेकिन शिलादित्य और उसके भाई मारे गए। शिलादित्य का बेटा भूपति राय इस समय एक युद्घ अभियान पर था, जब उसे इस घटना की जानकारी मिली तो वह लौटा और बहादुर शाह के सामंत को मार भगाया। इस तरह रायसेन किले पर फिर राजपूतों का कब्जा हो गया।
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