5 दिवसीय पंचक्रोशी यात्रा आज से प्रारम्भ हुई, हजारों श्रद्धालु पंचक्रोशी यात्रा में हुए शामिल
उज्जैन।
प्राचीन उज्जयिनी ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी होने से अनेक विशिष्टताएं समेटे हुए है। पावन उज्जयिनी तीर्थ नगरी के रूप में मान्यता प्राप्त है। विश्व प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग उज्जयिनी में विराजमान है। महाकाल मन्दिर की चारों दिशाओं में चार द्वारपाल विराजित हैं। इन चार द्वारपालों की परिक्रमा वैशाख माह की कृष्ण दशमी (15 अप्रैल) से प्रारम्भ हुई और अमावस्या पर समाप्त होगी। चिलचिलाती कड़ी धूप पर आस्था और विश्वास की पंचक्रोशी यात्रा भारी है। यात्रा में दूर-दराज के इन्दौर, उज्जैन, भोपाल, गुना, धार, मंदसौर, नीमच, देवास, सीहोर आदि जिलों के श्रद्धालु शामिल हुए हैं। यात्रा में शिव के गुणगान, भजन, कीर्तन, हरि लागवे बेड़ा पार आदि का गुणगान करते हुए अपने पड़ाव स्थलों की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यात्रियों को जहां खाने की इच्छा होती है, वहीं छांव देखकर, पड़ाव स्थल या यात्रा मार्ग पर दाल-बाटी आदि का आनन्द लेते हैं। यात्रा मार्ग एवं पड़ाव स्थल पर अनेक सामाजिक संस्थाएं यात्रियों को पेयजल, शर्बत, फलाहार आदि भी नि:शुल्क वितरित कर पुण्यलाभ प्राप्त कर रहे हैं।
पंचक्रोशी यात्रा 118 किलो मीटर की है। श्री महाकालेश्वर भगवान यात्रा के मध्य में स्थित है। तीर्थ के चारों दिशाओं में क्षेत्र की रक्षा के लिये भगवान महाकाल ने चार द्वारपाल शिव रूप में स्थापित किये हैं, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदाता हैं। इसका उल्लेख स्कंदपुराण के तहत अवंतिका खण्ड में है। पंचक्रोशी यात्रा में इन्हीं चार द्वारपाल की कथा, पूजा विधान में इष्ट परिक्रमा का विशेष महत्व है। पंचक्रोशी यात्रा के मूल में शिव के पूजन, अभिषेक, उपवास, दान, दर्शन की ही प्रधानता है। क्षेत्र के रक्षक देवता श्री महाकालेश्वर भगवान का स्थान मध्य बिन्दु में है। इस बिन्दु के अलग-अलग अन्तर से मन्दिर स्थित है, जो द्वारपाल कहलाते हैं। उज्जयिनी के पूर्व में स्थित चौरासी महादेव में से 81वा लिंग है। इस महाकाल वन का पूर्व द्वार पिंगलेश्वर माना जाता है। पंचक्रोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है। दक्षिण में कायावरणेश्वर महादेव (करोहन), पश्चिम में बिलकेश्वर महादेव (अंबोदिया) तथा उत्तर में दुर्देश्वर महादेव (जैथल) जो चौरासी महादेव मन्दिर की श्रृंखला के अन्तिम चार मन्दिर हैं। इसी तरह करोहन से नलवा उप पड़ाव स्थल, कालियादेह उप पड़ाव स्थल, उंडासा पड़ाव स्थल है। पांच दिवस की पंचक्रोशी यात्रा का पुण्यफल अवंति में वास में करने का अधिक है। वैशाख कृष्ण दशमी पर शिप्रा स्नान एवं श्री नागचंद्रेश्वर के पूजन के पश्चात यात्रा प्रारम्भ होती है जो 118 किलो मीटर की परिक्रमा करने के बाद कर्क तीर्थवास में समाप्त होती है और तत्काल अष्टतीर्थ यात्रा आरम्भ होकर वैशाख कृष्ण अमावस को शिप्रा स्नान के पश्चात यात्रा का समापन होता है।